Friday, February 11, 2011



मकान की

 उपरी मंजिल पे अब कोई नहीं रहता,

वो कमरे बंद हैं कबसे
जो 24 सीढियां जो उन तक पहुँचती थी, अब ऊपर नहीं जाती

मकान की उपरी मंजिल पे अब कोई नहीं रहता

वहां कमरों में, इतना याद है मुझको,
खिलौने एक पुरानी टोकरी में भर के रखे थे.
बहुत से तो उठाने , फेंकने , रखने में चूरा हो गए .

वहां एक बालकनी भी थी, जहां एक बेंत का झूला लटकता था.
मेरा एक दोस्त था, तोता , वो रोज़ आता था
उसको एक हरी मिर्ची खिलाता था

उसी के सामने एक छत थी, जहाँ पर
एक मोर बैठा आसमां पर रात भर
मीठे सितारे चुगता रहता था

मेरे बच्चों ने वो देखा नहीं ,
वो नीचे की मंजिल पे रहते हैं,
जहाँ पर पियानो रखा है, पुराने पारसी स्टाइल का,
फ्रेज़र से ख़रीदा था , मगर कुछ बेसुरी आवाजें करता है
के उसकी रीड्स सारी हिल गयी हैं , सुरों के ऊपर दूसरे सुर चढ़ गए हैं

उसी मंजिल पे एक पुश्तैनी बैठक थी
जहाँ पुरखों की तसवीरें लटकती थी
मैं सीधा करता रहता था , हवा फिर टेढा कर जाती

बहू को मूछों वाले सारे पुरखे क्लीशे[Cliche] लगते थे
मेरे बच्चों ने आखिर उनको कीलों से उतारा , पुराने न्यूज़ पेपर में
उन्हें महफूज़ कर के रख दिया था
मेरा भांजा ले जाता है फिल्मो में
कभी सेट पर लगाता है, किराया मिलता है उनसे


मेरी मंजिल पे मेरे सामने
मेहमानखाना है, मेरे पोते कभी
अमरीका से आये तो रुकते हैं
अलग साइज़ में आते हैं वो जितनी बार आते
हैं, ख़ुदा जाने वही आते हैं या
हर बार कोई दूसरा आता है.

वो एक कमरा जो पीछे की तरफ बंद
है, जहाँ बत्ती नहीं जलती , वहां एक
रोज़री रखी है, वो उससे महकता है,
वहां वो दाई रहती थी कि जिसने
तीनों बच्चों को बड़ा करने में
अपनी उम्र दे दी थी, मरी तो मैंने
दफनाया नहीं, महफूज़ करके रख दिया उसको.


और उसके बाद एक दो सीढिया हैं,
नीचे तहखाने में जाती हैं,
जहाँ ख़ामोशी रोशन है, सुकून
सोया हुआ है, बस इतनी सी पहलू में
जगह रख कर, के जब मैं सीढियों
से नीचे आऊँ तो उसी के पहलू
में बाज़ू पे सर रख कर सो जाऊं .

मकान की उपरी मंजिल पे कोई नहीं रहता..



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