Friday, December 24, 2010

from "Raat Pashmine ki"

मुझे खर्ची  में पूरा  एक दिन , हर रोज़ मिलता है
मगर  हर रोज़ कोई छीन लेता है ,
झपट लेता है, अंटी  से
कभी  खीसे  से  गिर  पड़ता  है  तो  गिरने  की
आहट  भी  नहीं  होती ,
खरे  दिन  को  भी  खोटा  समझ  के  भूल   जाता  हूँ  में

गिरेबान  से  पकड़  कर  मांगने  वाले  भी  मिलते  हैं
"तेरी  गुजरी  हुई  पुश्तों  का  कर्जा  है , तुझे  किश्तें  चुकानी  है "

ज़बरदस्त  कोई  गिरवी  रख  लेता  है , ये  कह  कर

अभी  2-4 लम्हे  खर्च  करने  के  लिए  रख  ले ,
बकाया  उम्र  के  खाते  में  लिख  देते  हैं ,
जब  होगा , हिसाब  होगा

बड़ी  हसरत  है  पूरा  एक  दिन  इक  बार  मैं
अपने  लिए  रख  लूं ,
तुम्हारे  साथ  पूरा  एक  दिन  
बस  खर्च
करने  की   तमन्ना  है  !!

Friday, December 17, 2010

ग़म की डली



तुम्हारे ग़म की डली उठाकर
जुबां पर रख ली है देखो मैंने
ये  कतरा-कतरा पिघल रही है
मैं कतरा कतरा ही जी रहा हूँ

पिघल पिघलकर गले से उतरेगी
आखरी बूँद दर्द की जब
मैं साँस आखरी गिरह को भी खोल दूँगा
.
.

Friday, December 3, 2010


From ...Aaandhii...................aawsssssssssmmmm


बर्सौं  बाद  यूँ  घूमने  निकली  हूं
ऐसा  लगता  है  की  वो  किसी  और  सदी   की  बात  थे

शायद  ये  उन  दिनों  की  बात  होगी ..जब  ये  इमारत  अभी  उजारी  नही  थी  


पिछले  किसी  जनम  की  बात  ही  तो  लगती  है
एक  काम  करें ........
जब  तक  तुम  यहान  हो  रोज़  घर  पे  खाने  के  लिए  तो  आया  ही  करोगी

खाने  के  बाद  घुमने  निकल  आया  करंगे ...कम  से  कम  ये  इमारत  कुछ  दिनों  के  लिए  तो
बस  जायेगी

तुम्हारी  शाल   कहाँ  है


अरे  ना  ना ....
तुम  नही  बदलोगी ...............
तेरे  बिना  जिंदगी  से  कोई  शिकवा  तो  नही  .शिकवा  नही
तेरे  बिना  ज़िन्दगी  भी  लेकिन ... जिंदगी  तो  नही  .....जिंदगी  नही

काश  ऐसा  हो  के  तेरे  क़दमों  से  चुन  के  मंजिल  चलें
और   कहीं  दूर   कहीं ,..तुम  गर  साथ  हो ..मंजिलों  की  कमी  तो  नही

सुनो  आरती  ये  जो  फुल्लों  की   बेले  नज़र  आती  है  ना ......दरअसल  ये  बेले  नही  है ...अरबी  में  आयतें  लिखी  हैं ..इसे  दिन  के  वक़्त  देखना  चाहिए ......बिलकुल  साफ़  नज़र  आती  हैं ..दिन  के  वक़्त  ये  सारा  पानी  से  भरा  रहता  है ...दिन  के  वक़्त  जब  ये  फुहारे ...
मजाक  क्यूँ   कर  रहे  हो ..कहाँ  आ  पाउंगी  मैं  दिन  में

ये  जो  चाँद  है  ना  इसे  रात  में  देखना ..ये  दिन   में  नही  निकलता .

ये  तो  रोज़  निकलता  होगा
हाँ  लेकिन  बीच  में  अमावस  आ  जाती  है ..वैसे  तो  अमावस  15 दिन  की  होती  है ...लेकिन
इस  बार  बहुत  लम्बी  रही ..............

9 बरस  लम्बी  थी  ना .....


जी  में  आता  है  तेरे  दामन  में  सर  छुपा  के  हम  रोते  रहें
तेरे  भी  आँखों  में  आंसुओं   की  कमी  तो  नही

तुम  जो  कह  दो  तो  आज  की  रात  चाँद  डूबेगा  नही ...रात  को  रोक  लो
रात  की  बात  है  ...और  ज़िन्दगी  बाकी  तो  नही .....

तेरे  बिना  जिंदगी  से  कोई  शिकवा  तो  नही  .शिकवा  नही
तेरे  बिना  ज़िन्दगी  भी  लेकिन ... जिंदगी  तो  नही  .....जिंदगी  नही

Monday, August 23, 2010

अख़बार


  
सारा दिन में खून में लथपथ रहता हूं
सारे दिन में सुख सुख के काला पड़ जाता है खून
पपडी सी जम जाती है
खुरच खुरच एक नाखूनों से
चमड़ी छिलने लगती है
नाक में खून की कच्ची बू
और कपडों पर कुछ काले काले चकते से रह जाते हैं

रोज़ सुबह अख़बार मेरे घर
खून में लथपथ आता है !
                                                                      -------गुलज़ार .

पुखराज़



जरा सी पीठ गर नंगी होती
फटे हुए होते उसके कपड़े
लबों पे गर प्यास की रेत होती
और एक दो दिन का फ़ाका होता
लबों पे सुखी हुई सी पपड़ी
जरा सी तुमने जी चिल्ली होती
तो खून का इक दाग़ होता .

तो फिर ये तस्वीर बिक ही जाती !
                                                          . .......गुलज़ार


Tuesday, August 17, 2010

ओ दिल बंजारे जा ऱे...mayamemsahab



ओ  दिल बंजारे जा ऱे  
खोल डोरियाँ सब खोल दे
ओ दिल बंजारे ....जा ऱे
धुप से छनती छाँव आँख में भरना चाहूँ
आँख से छनते सपने होंठ से चखना चाहूँ  
ये मन संसारी
बोले इक बारी अब डोल दे....
ओ दिल बंजारे जा ऱे
खोल डोरियाँ सब खोल दे

 







दिल ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन


दिल ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन
बैठे रहें ......तस्सवुर ए जाना ........किये हुए
या गर्मियौं  की रात जो .........पुरवाइयां चलें
ठंडी ......सफ़ेद चादरों ......पे जागे ...देर तक
तारों को .........देखते रहें.... छत  पर पड़े हुए

.....
.....

इक हसीं निगाह का..maya memsaahib



.
इक हसीं निगाह का मुझपे साया है 
जादू है जूनून है कैसी माया है....ये माया है ...
तेरी नीली आँखों के भंवर बड़े हसीन हैं
डूब जाने दो मुझे ..ये खाव की ज़मीन है 
उठा दो अपनी पलकों किओ ये पर्दा क्यूँ गिराया है
.
.
  

खिड़की में कटी हैं सब रातें


फूलों की तरह लब खोल कभी
खुशबू की जुबां में बोल कभी !

अलफ़ाज़ परखता रहता है
आवाज़ हमारी तोल कभी !

खिड़की में कटी हैं सब रातें
कुछ चौरस और  कुछ गोल कभी !

ये दिल भी यार ज़मीन की तरह
हो जाता है डावांडोल  कभी !!
.




शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं

.

खुशबू  जैसे लोग मिले अफ़साने में 
इक पुराना ख़त खोला अनजाने में ! 

शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगादी आने में !

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता हूं वीराने में !

जाने किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़ा लेता है जो दोहराने में !!
.



जितने भी तय करते गये बढ़ते गये ये फासले ...libaas

.
सिली हवा छू गयी सिला बदन छिल गया
नीली नदी के परे गीला सा चाँद खिल गया !

तुमसे मिली जो जिंदगी हमने अभी बोई नही
तेरे सिवा कोई न था तेरे सिवा कोई नही !

जितने भी तय करते गये बढ़ते गये ये फासले
मीलों से दिन छोड़ आये सालों से रात लेके चले !
.




mayamemsaahab

Monday, August 16, 2010

humne dekhi he......khaamoshi

टूटी हुई चूड़ियों से जोडूँ ये कलाई मैं



 
रोज़ - रोज़ आँखों तले .......इक ही सपना चले
रात भर काज़ल जले
आँख में ....जिस तरहा.......खाव का दिया जले
रोज़ रोज़ आँखों तले...
जब से तुम्हारे नाम की मिसरी होंठ  लगाई है
मीठा सा गम है और मीठी .......सी तन्हाई है...

.

...

jaado ki narm dhoop aur....






Friday, August 13, 2010

गुलज़ार ...आपके लिए............





मैं कैसे बताऊँ के तुम मेरे लिए क्या हो
प्यासे चातक की वो बुझी प्यास हो
जो स्वाति की पहली बूँद के चखने  से हो

मैं कैसे बताऊं तुम मेरे लिए क्या हो
दुनिया भर से उलझते- २ झगड़ते- २
थक के जो सर टिकाते ही पा जाऊं
माथे पे उस सुबुक-शफीक लम्स से हो !


मैं कैसे बताऊं तुम ..............................
अज़ीयत ए हस्ती ने नाज़िस किया दिल
तेरे कलाम से धोया तो पाकीज़गी पायी
मेरे लिए तो तुम आब ए ज़मज़म से हो
तुम मेरे लिए क्या हो ............................

अक्सर जली हूं खुद पकड़ हाथों में शोले
मुझे लगाये मलहम और पौछें आंसूं भी
मेरे लिए तो तुम अह्बाबी हाथों से हो

मैं कैसे बताऊं तुम मेरे लिए क्या हो !!

...........................
..........................................